Tuesday, July 13, 2010

PUBLISHED WORK OF THIS AUTHOR

Native freelauncer & Author of Hindi Language. so many books are published by reknowne publishers. I am also translater, Hindi > Punjabi >Hindi. Contact for book publishing, Editing and Proof Reading.


1   Shaily Apni apni,
2   Sar Sanklan Balrampur,
3   Tapobhumi,
4   Tapovan,
5   Sattwni Kranti ka Antim Yuddh ( Published & Awarded By State Musium Jhansi)
6   Awadh (Oudh) Ke Talukdar ( Published By Rupa Publisher, New Delhi) Are my published work.
7   Giripar ka  Hatee Samudaya
8   Chalein Bekal ke Gaon,
9   Mohyal Chhibbers In Indian History (with Narender Mehta and khalid Bin Umar)
10 Balrampur Raj aur Ptoha Kot (with Amitabh Singh)
11 Taaluqdars of Oudh (with Amit Singh)
12 Antas ki yatra (Khalid bin Umar)



2 comments:

  1. ~ तुम्हारे लिए ~
    (उस संत को जिन्हे मैंने महसूस किया)
    भृगुवंशी पवन बख्शी के लिए, ऊपर से आधुनिक से दिखने वाले परन्तु भीतर से एक संत।


    हिमाचल की धरती पर
    पड़े जब कदम तुम्हारे
    मै जान सका तब
    कि संत किसे कहते हैं।
    मैने सोचा था
    जब मिलेगी फुर्सत कभी
    खेत खलियानों से
    लिखूंगा कुछ ज़रूर
    तुम्हारे लिए।

    मै सोच मेँ डूबा
    बुदबुदा रहा था कुछ
    उदर मेँ उमड़ती घुमड़ती
    तड़पाती वायु सी ज्यूँ
    हिचकोले खाते भाव विचार
    होड़ लगाएँ बाहर आने कि ज्यूँ
    कलम, हाथ मेँ आते ही
    शब्द, फूट पड़े अनायास ही
    कलम कि जुबां से।
    अंधविश्वासों से घिरी
    रूढ़िवादियों की इस धरती पर
    तुम्हारा आगमन
    जैसे इक नयी विचार क्रांति का जन्म।

    मूर्खों के जंगल मेँ
    तुम्हारी बेबाक टिप्पणियाँ
    एक बार तो कुछ अलग
    सोचने को कर देती हैं मजबूर।
    बात समझ आते ही लौटने लगते
    चले गए थे छोड़ तुम्हें जो दूर।

    मै खुद
    जो कभी तुम्हारे निकट था
    निकट से निकटतम हो गया
    मैंने देखा है करीब से तुम्हें
    स्वभाव से सहज, मृदुभाषी
    कुछ संकोची पर संवेदनशील
    निरंतर सक्रिय
    अंतस (भीतर) की यात्रा मेँ।

    जिस हद तक
    मैंने जाना है तुम्हें
    शांत मुखड़े के भीतर
    छिपा है शायद कोई बवंडर
    झंझावातों को कर सहन
    आवरण खुशनुमा ओढ़े हुये

    घर परिवार नाते रिश्ते
    राग द्वेष अहंकार लालच को छोड़
    निकल आए हो बहुत दूर
    त्याग की भावना लिए
    साधना के मार्ग पर।

    मैने देखा है तुम्हें
    इक त्यागी संत के रूप मेँ
    मै हैरान रह जाता हूँ तब
    जब किसी की आँखों मेँ झाँकते ही
    बयां कर देते हो उसका लेखा जोखा
    दूसरे के दुख दर्द देख
    भूल जाते हो अपने को
    अजूबा है या कोई सिद्धि
    समझ नहीं मै पाता हूँ।

    है बिनती प्रभु से मेरी
    जो सीखी यात्रा अंतस (भीतर) की तुमने
    हम सब को भी सिखला देना
    उसी भावना से करें हम सेवा
    जिस भावना से तुम हो करते।
    तुमसे सीखें कुछ हम
    हमसे सीखें कई और
    चले सिलसिला यह अनवरत
    तुमने तलाशा जिन आँखों मे कुछ
    तलाश रहीं वो आँखें कुछ और
    निकल पड़े हो उस पथ पर भी तुम
    जानने उन तलाशती आँखों का ठौर.

    इतना तो जान चुका हूँ मै
    व्यर्थ है जीवन
    बिन अंतस (भीतर) की यात्रा के।
    मिला सकूँ जिनको तुमसे
    देते दुआएं दीर्घायु की
    बिन मांगे बिन बोले ही
    सानिध्य तुम्हारा पाकर
    कुछ तो मैंने पाया है तुमसे।

    मन के भाव शब्द मेँ ढलकर
    गीत बने या कविता
    मेरे संत, मैने तुम्हें जाना ही नहीं
    बल्कि महसूस किया है तुमको ।
    मेरे संत
    मेरे शब्द जो केवल तुम्हारे लिए हैं
    तुम्हें समर्पित, तुम्हें समर्पण
    शत शत नमन
    एवं
    चरण वंदन।

    डा० के० तोमर
    प्रवक्ता: राजकीय महाविद्यालय शिलाई (जिला सिरमौर)
    दिनांक: 15 अप्रेल 2012


    खत्री तोमर जी, आपने अपनी भावनाओं को शब्द देने का प्रयास किया है। सच तो ये है की भावनाओं को कभी शब्दों में ढाला ही नहीं जा सकता। मै आपकी भावनाओं की कद्र करता हूँ और उन्हें समझ सकता हूँ। साधुवाद।

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  2. Adaab pawan sir, sir mujko nagram ki tareeq ki kitaab chahiye hai aur sir hum app se milna chahate hai

    Thank you sir

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