पूर्व जन्म का सत्य
लेखिका : प्रियंका (पूनम) नेगी
ग्राम : मानपुर, पोस्ट : शरली जिला सिरमौर (हिमाचल)
सम्पादन : भृगुवंशी पवन बख्शी
कई दिनों से हमारे क्षेत्र में एक चर्चा ने ज़ोर पकड़ रखा था कि
कहीं बाहर से कोई व्यक्ति आया है जिसे लोग गुरु जी के नाम से संबोधित करते हैं।
उनके बारे मे लोग बताते हैं कि वे लगभग बीस से अधिक पुस्तकों का सृजन कर चुके हैं
जिन्हें दुनिया के नामी गिरामी प्रकाशकों ने प्रकाशित किया है। लेखन जगत में वे एक
प्रतिष्ठित एवं स्थापित लेखक हैं। उनकी दूसरी चर्चा यह सुनाई दी कि वे ज्योतिष के
प्रकांड पंडित हैं। उनके प्रति यह भी सुनाई दिया कि वे एक अध्यात्मिक चिकित्सक भी
हैं। मनोरोग के ज्ञाता होने के कारण वे उन समस्याओं का निराकरन कुछ ही पलों मे कर
देते हैं जिससे हमारा क्षेत्र अधिक प्रभावित है।
मै हिमाचल
प्रदेश के सिरमौर ज़िले के अंतर्गत गिरिपार क्षेत्र के हाटी कबीले से हूँ। हमारी
संस्कृति वही है जो उत्तराखंड के जोनसार बावर क्षेत्र के कबीले की है। दोने ही
कबीलों में भूत, प्रेत, साया, मात्री, किसी ऊपरी शक्ति का प्रभाव आदि मान्यताओं
को समुचित श्रेय प्राप्त है। दोनों ही क्षेत्रों में अधिकांशत: महिलाएं ही इन रोगों से ग्रस्त हैं।
जब मुझे पता चला कि
गुरु जी (जिनका नाम भृगुवंशी पवन बख्शी है) भूत प्रेत इत्यादि समस्या का उपचार
बिना मन्त्र, बिना किसी जादू टोना किए मनोवैज्ञानिक ढंग से
केवल बातों ही बातों द्वारा समस्या ग्रस्त रोगी को ठीक कर देते हैं तो ऐसे बहुमुखी
प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति से मिलने की इच्छा और अधिक प्रबल होने लगी। एक दिन मेरी
मम्मी और भाभी अपनी कुछ समस्याओं के निदान हेतु गुरु जी के पास गईं। जब वे वापस घर
आयीं तो उन्होने उनके स्नेहिल व्यवहार और उनकी विद्वता के बारे में विस्तार से
बताया तो मैं उनसे मिलने की इच्छा को दबा न सकी। मैंने मम्मी से कहा कि अब जब वे
गुरु जी के पास जाएंगी तो मैं भी आपके साथ चलूँगी। तीसरे दिन जब मम्मी और भाभी
गुरु जी के पास जाने लगीं तो मैं भी उनके साथ गयी।
गुरु जी
बिस्तर पर बैठे थे। हम लोग सामने रखी कुर्सियों पर बैठ गए। कुछ लोग पहले से ही
वहाँ उपस्थित थे। एकदम शांत, निर्विचार सा मुख। वहाँ
उपस्थित सभी लोग जैसे मंत्र मुग्ध से उनके प्रति आकर्षित से बैठे थे। ऐसे लग रहा
था कि जैसे गुरु जी के बदन से प्रेम की धारा सी बह रही हो। कमरे में मौन व्याप्त
था। गुरु जी ने मेरी मम्मी से बात करनी शुरू की। वे उन्हें कुछ आवश्यक दिशा
निर्देश दे रहे थे। बीच बीच में कभी कभी उनकी दृष्टि मुझपर भी पड़ जाती थी। पिछले
दो दिनों से मेरा मन गुरु जी से मिलने हेतु परेशान था। मेरा मन कर रहा था कि मैं
उनके और निकट जाकर बैठ जाऊँ, मेरी यह इच्छा और बलवती होने
लगी, मुझे लगा कि अगले ही क्षण मैं उनके निकट बैठ जाऊँगी; तभी गुरु जी ने मेरी तरफ देखा और अपने पास बैठने के लिए हाथ का इशारा
करते हुये कहा-
“यहाँ बैठ जाओ”।
अगले
ही क्षण मै उनके पास बैठ गयी और सोचने लगी कि उन्होने कैसे मेरी इच्छा को जान
लिया। थोड़ी देर के बाद उन्होने मेरी मम्मी से कहा “इस लड़की को देख कर लगता है कि
इसे कोई समस्या नहीं है, यह ठीक ठाक है। फिर भी इसकी एक
सिटिंग, एक क्लास लगा देता हूँ।’’ उसके
बाद सबकी उपस्थिति में मुझे बिस्तर पर लिटा दिया गया। मुझे आँखें बंद करने को तथा
कहीं से भी आँखों मे रोशनी न पड़ने देने को कहा गया। मात्र कुछ ही मिनट्स में जो
कुछ घटित हुआ, वह सभी के लिए अचंभित एवं अप्रतियाशित था। मेरे
साथ क्या घटित हुआ था यह मेरी छोटी बहन निकिता जो कि पूरे समय मेरे पास थी, उसने मुझे वही सब बताया जो गुरु जी बताया था। उस अचंभित कर देने वाली
घटना का सारांश मै गुरु जी के ही शब्दों में व्यक्त करना अधिक पसन्द करूंगी।
मैं प्रियंका
की मम्मी से बात कर रहा था। कई बार मेरा ध्यान प्रियंका की तरफ गया। मुझे अहसास
हुआ कि यह लड़की मुझसे कुछ कहना चाहती है। मैंने उससे पूछा कि “कुछ कहना चाहती हो ?” उसने गर्दन हिलाकर नकारात्मक उत्तर दिया। मैंने उसे लेट जाने को कहा। जब
वह लेट गयी तो मैंने उसको बिलकुल शांत हो जाने को कहा। हयप्नोसिस द्वारा मैंने उसे
गहरी नींद में ले जाने का प्रयास किया। मात्र पाँच मिनट्स से भी कम समय में उसने बोलना
शुरू किया – “मुझे गहरा अंधेरा दिखाई दे
रहा है। उस गहरे अंधेरे में मुझे आकाश से आता हुआ एक तेज़ प्रकाश दिखाई दे रहा है।“
मैंने उससे कहा कि “तुम उसे चमकते प्रकाश के मध्य जाकर खड़ी हो
जाओ।“
उसने बताया कि वह प्रकाश मे खड़ी हो गयी है, उसे एक खूबसूरत बच्ची दिखाई दे रही है। मैंने उसे उस बच्ची से बात करने
को कहा। उसके बाद जो कुछ हुआ वह मेरे लिए भी अप्रत्याशित था। उसने जो कुछ बताया, उससे मेरे शांत जीवन में हलचल सी मच गयी।
उस बच्ची के रूप में प्रियंका ने बोलना शुरू किया – “मै आपको कई
वर्षों से तलाश रही हूँ। मै जब मरी थी तब मेरे मम्मी पापा भी मेरे पास नहीं थे। मै
आपको याद करके बहुत रोयी थी। मै तब से आपको तलाश रही हूँ।“
मैंने उससे पूछा “तुम्हारी मौत कैसे हुयी थी, तुम कहाँ थी।’’
उसने कहा “बस ने टक्कर मार दी थी। मेरे सिर से बहुत खून निकला
था। मेरा पैर भी टूट गया था। आप एक बार अस्पताल में मिलने भी आए थे। फिर कभी नहीं
आए। मैं तब से आपको तलाश रही हूँ।’’
मैंने उससे पूछा – “तुम कौन हो ? और मुझे
क्यों तलाश रही हो।’’
उसने कहा – “आप मेरे सर जी हो। मै आपके स्कूल में पढ़ती थी। मैं
आपकी स्टूडेंट थी। मै पहली और दूसरी क्लास आपके पास पढ़ी हूँ। आप मुझे बहुत प्यार
करते थे। मै आपके लिए टिफिन भी लाया करती थी।’’
मुझे याद आ
गए वो दिन जब मै एक निजी स्कूल चलाया करता था। पहली कक्षा में एक छोटी बच्ची पढ़ती
थी। अन्य बच्चों की अपेक्षा वह कुछ अधिक सुंदर थी और स्कूल आने के प्रारम्भिक
दिनों में मुझसे ज्यादा हिलमिल जाने के कारण, अन्य अध्यापकों
की अपेक्षा मुझसे अधिक लगाव रखती थी। मुझे उसका नाम याद नहीं आ रहा था। हाँ उसकी
धुंधली सी छवि मेरी आँखों के सामने तैरने लगी। उस बच्ची के घुँघराले बाल मुझे बहुत
अच्छे लगते थे। जब कभी वह गुलाबी या सफ़ेद फ़्राक पहन कर आती थी किसी छोटी सी परी
जैसी लगती थी। स्कूल में जब कोई अन्य बच्चा उसे तंग करता तो वो रोते हुये मेरे पास
आती थी, तब मै उसे गोद मे उठा कर उसके घुँघराले बालों को
सहला कर उसे चुप कराया करता था। मुझे याद है, मै उससे मिलने अस्पताल
भी गया था।
अर्धनिंद्रा की अवस्था में लेटी हुयी प्रियंका से मैंने पूछा-“अब
तुम कहाँ हो। तुम्हें अपना नाम याद है ?’’ उसने कहा “मेरा
नाम पूनम है। मै बहुत वर्षों से आपको तलाश रही थी। यह जो लड़की लेटी है, यह मै ही हूँ। अब मै बड़ी हो गयी हूँ।’’
मैंने पूछा “पूनम! तुम्हारे बाल घुँघराले थे न।’’ उसने हाँ में सिर हिलाया और सिसकियाँ लेने लगी। मुझे उस बच्ची के बारे मे
काफी कुछ याद आ गया था। मैं बहुत भावुक हो चुका था, मेरी अपनी
पलकें भीग गयी थीं। उसने बताया कि वो मेरे साथ मंदिर भी जाया करती थी। मुझे वह भी याद
आ गया। वह मेरे साथ कई बार देवी पाटन मंदिर गयी थी। मैंने पूछा “पूनम! तुम्हें मंदिर
याद है।’’ उसने कहा “देवी जी का।’’
मैंने उससे कहा “पूनम! मै तुम्हें पहचान चुका हूँ।’’ मेरे इतना कहते ही उसकी सिसकियाँ कुछ तेज़ हो गईं। मैंने कहा “पूनम! मेरे पास
आना चाहोगी। मेरे इतना कहते ही अर्धनिंद्रा की अवस्था में उसने करवट ली और मेरी गोद
में सिर रख कर, मुझसे लिपट कर काफी देर तक वह इतना रोयी कि मैं
भी अपनी भीगी पलकों से टपकने को आतुर आंसुओं को रोक ना सका। उसका इस कद्र लिपट कर रोना
अहसास करा रहा था कि जैसे कोई अपना अतिप्रिय वर्षों बाद मिला हो। मुझे लग रहा था कि
जैसे मेरी गोद में गुलाबी फराक पहने वही छोटी सी पूनम रो रही है। मै काफी देर तक उसके
माथे और बालों को सहलाता हुये उसे चुप कराने का प्रयास करता रहा।
प्रियंका के सामान्य
होने पर हम लोगों ने नींबू कि चाय पी। मैंने प्रियंका से कहा कि आज से तुम मेरे लिए
पूनम हो। उस जन्म में तो मैं तुम्हारे लिए कुछ न कर सका पर इस जन्म में मै तुम्हें
कुछ ऐसा बनाने का प्रयास करूंगा कि इतिहास में तुम्हारा नाम अमर हो जाए।
जब वह और उसकी
छोटी बहन निकिता वापस गाँव जाने को हुईं तो दरवाजे पर खड़ी होकर उसने मुझसे कहा “मै
कल अपना और आपका टिफिन ले कर आऊँगी’’ जाते जाते भी उसने
मेरे मन की शांत तरंगों को झकझोर दिया। उसके जाने के बाद मैं पूनम की स्मृतियों में
खो गया। मुझे बार बार पूनम का वो चेहरा याद आने लगा जिसे मैंने वर्षों पहले देख था।
No comments:
Post a Comment